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गुरुदेव श्री उत्तम स्वामी जी की महिमा उम्र की मोह्ताज नही है| अपनी साधना-शक्ति, यश और कुशल बुद्धी से समय को भी आपने जीत लिया है| जिस उम्र मे नौजवान मनोरन्जन के फेरे मे रेह्ता है उस उम्र मे सन्कट-मोचन की भुमिका स्वीकार की है| वे कठोर तपस्वी रहे है और उनके पास बेठना घर के बुजुर्ग के पास बेठने जैसा तसल्ली देता है| वे गुरु ही नही पालक भी है| मार्ग-दर्शक ही नही मुक्ति-दाता भी है| वे आदिवसियो के उत्थान के लिये अपने प्रभाव का पुरा इस्तेमाल करते है|
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वे ज्योतिश के प्रखान्ड विद्वान है एवम उनका अधिकतर समय लोगो कि समास्याओ एवम विघ्नो के समाधान मे बितता है| वे विलक्षण है और अपनी विध्वता से वितरागियो का भी मन मोह लेते है|
विश्व कल्याण, समाज को सद्मार्ग पर ले जाने की शक्ति व सामर्थ्य पाने के लिए कठोर तप एवम त्याग करने के साथ सेवाभावी बनना कठिन है| पर जिसमे इतनी लगन हो वो हर बाधा को पार करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति में मग्न हो जाता है | ऐसे ही ध्यान योगी महर्षि उत्तम स्वामी जी है| सन १९७६ में जन्माष्टमी की मध्य रात्रि को जन्म लेने वाले महर्षि उत्तम स्वामी जी ने बचपन से अनेक खतरों और कष्टों का सामना किया, किन्तु इसे हमेशा अपने तप का हिस्सा माना | सवा साल की आयु में नाग देवता और ५ साल की आयु में मधुमख्खियो से घिर गए थे, पर इनका बाल भी बांका नहीं हुआ| बचपन से ही कठिन से कठिन समस्या का चंद मिनटों में समाधान कर देने वाले उत्तम स्वामी जी की गाँव-गाँव में प्रसिद्धी फ़ैल गई| माता- पिता से अनुमति लेकर वैष्णव आदिनाथ योग-पीठ पंढरपुर में शिक्षा ग्रहण करना शुरू किया| गुरुदेव ने यहाँ गीता को कंठस्थ किया एवं शास्त्रों - पुराणो के साथ संतो के चरित्रों का अध्ययन किया| गुरुदेव ने वाध्य- यन्त्र वादन में भी पारंगत हासिल की| यही प्रवचन कला में दक्ष होकर संगीतमय प्रवचन देने लगे| इससे गुरुदेव उत्तम स्वामी जी को वैराग्य हो गया| कुछ समय बाद गुरुदेव राजनंद गांव में १५१ वर्षीय तपस्वी संत श्री रामदास जी के संपर्क में आये| उन्होंने महर्षि उत्तम स्वामी जी जीवन धारा को मोड़ दिया| आध्यात्मिक शिक्षा के साथ ध्यान, योग, प्राणायाम, समाधि का अभ्यास कराया और सिद्धी प्रदान की| संत श्री ने शक्ति- पात कर महर्षि श्री उत्तम स्वामी को अपनी संपूर्ण ऊर्जा देकर १९ वर्ष की आयु में सन्यास शिक्षा दी| कुछ समय बाद गुरूजी रामदास जी ने वैकुंठ धाम को महा प्रयाण किया|
गुरु रामदास जी के देवलोक गमन से गुरुदेव उत्तम स्वामी जी खुद को अकेला महसूस किया | एक दिन निद्रा में गुरु की प्रेरणा और संकेत मिलने के बाद रात्रि दो बजे उत्तम स्वामी जी ने पुणे के लिए प्रस्थान किया| घूमते- फिरते संतो से समागम -सत्संग करते पहले होशंगाबाद और फिर अमराजरी पहुच गये| आलाउदल के गुरु अमरागुरु की सिद्ध तपस्थली अमराजरी में टाटम्बरी बाबा के यहाँ कुछ दिन रहे| युवा उत्तम स्वामी जी के मन में कुछ और ही चल रहा था| एक रात फिर गुरु के आदेश का पालन करते हुए विपरीत मौसम और प्रतिकूल स्थति में आश्रम से निकल पड़े और बिना मार्ग स्थित एक पहरी पर चढ़ना शुरू किया| गुरुदेव पहाड़ी पर चढाई के कारण थक गये बड़ के वृक्ष के तने से टिककर निढाल शरीर के साथ बेठ गए| तभी गुरु रामदास जी ने स्वप्न में साधना का संकेत दिया| आखे खोलने पर कद्कारी बिजली की रौशनी में पंचमुखी नाग साथ पर मणिधारी नाग ने दर्शन दिये | निर्जन स्थान पर उत्तम स्वामी जी ने कपड़ो को त्याग कर साधना प्रारंभ की| किसी से मिली और संपर्क में आये बगैर जंगल में ताप आराधना के साथ योगाभ्यास, ध्यान, प्राणायाम, समाधी का दौर शुरू हुआ| इसी दौरान आत्मा साक्षात्कार, अदृष्य शक्तियों के दर्शन किये और आदेश प्राप्त किये| साधना के तीन वर्ष गुजर गए| रहटी में रहने वाले किशोर पटेल को स्वप्न में संकेत मिले की अमराजारी की पहाड़ी पर एक संत साधना रत है| जाकर उन्हें भोजन कराओ| पहले तो किशोर पटेल को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन स्वप्न में मिले आदेश की पालना करते हुए वो भोजन लेकर पहाड़ी पर चल दिए| किशोर पटेल जब वह पहुचे तो तो देखा की स्वामी जी वह सो रहे है| किशोर ने उन्हें जगाया और भोजन ग्रहण कराया | इस बात की खबर पुरे क्षेत्र में फेल गयी | पहाड़ी पर श्रद्धालुओ का ताँता लग गया| लोक कल्याण के लिए गुरुदेव ने पहाड़ी को छोड़ दिया| इसके बाद सिलसिला प्रारंभ हुआ विश्व कल्याण और समाज को सही दिशा देने का| महर्षि उत्तम स्वामी जी ने विश्व कल्याण के लिए कई यज्ञ किये है| महर्षि उत्तम स्वामी जी का कहना है की दस जन्म सुधारने की बजाय एक जन्म सुधर लेना चाहिए | इन्द्रियों के माध्यम से मन को मथने से आत्म-साक्षात्कार होगा| ऐसे ज्ञान देने वाले गुरु के चरणों में सत- सत नमन|
विश्व कल्याण, समाज को सद्मार्ग पर ले जाने की शक्ति व सामर्थ्य पाने के लिए कठोर तप एवम त्याग करने के साथ सेवाभावी बनना कठिन है| पर जिसमे इतनी लगन हो वो हर बाधा को पार करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति में मग्न हो जाता है | ऐसे ही ध्यान योगी महर्षि उत्तम स्वामी जी है| सन १९७६ में जन्माष्टमी की मध्य रात्रि को जन्म लेने वाले महर्षि उत्तम स्वामी जी ने बचपन से अनेक खतरों और कष्टों का सामना किया, किन्तु इसे हमेशा अपने तप का हिस्सा माना | सवा साल की आयु में नाग देवता और ५ साल की आयु में मधुमख्खियो से घिर गए थे, पर इनका बाल भी बांका नहीं हुआ| बचपन से ही कठिन से कठिन समस्या का चंद मिनटों में समाधान कर देने वाले उत्तम स्वामी जी की गाँव-गाँव में प्रसिद्धी फ़ैल गई| माता- पिता से अनुमति लेकर वैष्णव आदिनाथ योग-पीठ पंढरपुर में शिक्षा ग्रहण करना शुरू किया| गुरुदेव ने यहाँ गीता को कंठस्थ किया एवं शास्त्रों - पुराणो के साथ संतो के चरित्रों का अध्ययन किया| गुरुदेव ने वाध्य- यन्त्र वादन में भी पारंगत हासिल की| यही प्रवचन कला में दक्ष होकर संगीतमय प्रवचन देने लगे| इससे गुरुदेव उत्तम स्वामी जी को वैराग्य हो गया| कुछ समय बाद गुरुदेव राजनंद गांव में १५१ वर्षीय तपस्वी संत श्री रामदास जी के संपर्क में आये| उन्होंने महर्षि उत्तम स्वामी जी जीवन धारा को मोड़ दिया| आध्यात्मिक शिक्षा के साथ ध्यान, योग, प्राणायाम, समाधि का अभ्यास कराया और सिद्धी प्रदान की| संत श्री ने शक्ति- पात कर महर्षि श्री उत्तम स्वामी को अपनी संपूर्ण ऊर्जा देकर १९ वर्ष की आयु में सन्यास शिक्षा दी| कुछ समय बाद गुरूजी रामदास जी ने वैकुंठ धाम को महा प्रयाण किया|
गुरु रामदास जी के देवलोक गमन से गुरुदेव उत्तम स्वामी जी खुद को अकेला महसूस किया | एक दिन निद्रा में गुरु की प्रेरणा और संकेत मिलने के बाद रात्रि दो बजे उत्तम स्वामी जी ने पुणे के लिए प्रस्थान किया| घूमते- फिरते संतो से समागम -सत्संग करते पहले होशंगाबाद और फिर अमराजरी पहुच गये| आलाउदल के गुरु अमरागुरु की सिद्ध तपस्थली अमराजरी में टाटम्बरी बाबा के यहाँ कुछ दिन रहे| युवा उत्तम स्वामी जी के मन में कुछ और ही चल रहा था| एक रात फिर गुरु के आदेश का पालन करते हुए विपरीत मौसम और प्रतिकूल स्थति में आश्रम से निकल पड़े और बिना मार्ग स्थित एक पहरी पर चढ़ना शुरू किया| गुरुदेव पहाड़ी पर चढाई के कारण थक गये बड़ के वृक्ष के तने से टिककर निढाल शरीर के साथ बेठ गए| तभी गुरु रामदास जी ने स्वप्न में साधना का संकेत दिया| आखे खोलने पर कद्कारी बिजली की रौशनी में पंचमुखी नाग साथ पर मणिधारी नाग ने दर्शन दिये | निर्जन स्थान पर उत्तम स्वामी जी ने कपड़ो को त्याग कर साधना प्रारंभ की| किसी से मिली और संपर्क में आये बगैर जंगल में ताप आराधना के साथ योगाभ्यास, ध्यान, प्राणायाम, समाधी का दौर शुरू हुआ| इसी दौरान आत्मा साक्षात्कार, अदृष्य शक्तियों के दर्शन किये और आदेश प्राप्त किये| साधना के तीन वर्ष गुजर गए| रहटी में रहने वाले किशोर पटेल को स्वप्न में संकेत मिले की अमराजारी की पहाड़ी पर एक संत साधना रत है| जाकर उन्हें भोजन कराओ| पहले तो किशोर पटेल को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन स्वप्न में मिले आदेश की पालना करते हुए वो भोजन लेकर पहाड़ी पर चल दिए| किशोर पटेल जब वह पहुचे तो तो देखा की स्वामी जी वह सो रहे है| किशोर ने उन्हें जगाया और भोजन ग्रहण कराया | इस बात की खबर पुरे क्षेत्र में फेल गयी | पहाड़ी पर श्रद्धालुओ का ताँता लग गया| लोक कल्याण के लिए गुरुदेव ने पहाड़ी को छोड़ दिया| इसके बाद सिलसिला प्रारंभ हुआ विश्व कल्याण और समाज को सही दिशा देने का| महर्षि उत्तम स्वामी जी ने विश्व कल्याण के लिए कई यज्ञ किये है| महर्षि उत्तम स्वामी जी का कहना है की दस जन्म सुधारने की बजाय एक जन्म सुधर लेना चाहिए | इन्द्रियों के माध्यम से मन को मथने से आत्म-साक्षात्कार होगा| ऐसे ज्ञान देने वाले गुरु के चरणों में सत- सत नमन|